निबंध की शैली
लेखक के व्यक्तित्व के अनुसार शैली का स्वरूप उत्पन्न होता है. कुछ लेखकों का व्यक्तित्व विचार और भाव के स्तर पर अधिक संगठित और ठोस होता है. उनका व्यक्तित्व नाना विचारों, अनुभवों और पर्यवेक्षणों से भरा होता है. ज्ञान और अनुभव का विस्तार उनके प्रति उनका लगाव इतना समावेशी और गहरा होता है कि वे अनेक उदाहरणों, कथा-प्रसंगों, ऐतिहासिक और शास्त्रीय उल्लेखों के जरिए विविध और अनेक स्तरीय जीवन का विराट दृश्य उपस्थित कर देते हैं. आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार ऐसे निबंधकार समास और व्यास शैली का उपयोग करते हैं. रामचंद्र शुक्ल और हजारीप्रसाद द्विवेदी के निबंध इन शैलियों के उदाहरण हैं.
किसी-किसी लेखक का व्यक्तित्व मन:स्थिति अर्थात मूड प्रधान होता है. वह तरंग में आकर लिखता है. इस शैली को तरंग शैली कहा जाता है. आचार्य रामचंद्र शुक्ल इस शैली के विषय में लिखते हैं:
यह भावाकुलता की उखड़ी-पुखड़ी शैली है. इसमें भावना…कभी इस वस्तु को कभी उस वस्तु को पकड़ कर उठा करती है. इस उठान को व्यक्त करने के लिए भाषा का चढ़ाव-उतार अपेक्षित है. हृदय कहीं वेग से उमड़ उठता है, कहीं वेग को न संभाल सकने के कारण शिथिल पड़ जाता है, कहीं एकबारगी स्तब्ध हो जाता है. इस शैली का गुण पाठक के हृदय को आन्दोलित करना भर है.
डा. रघुबीर सिंह की शेष स्मृतियाँ नामक पुस्तक में इस शैली का प्रयोग मिलता है.
कुछ लेखकों का व्यक्तित्व भावनात्मक तो होता है, लेकिन उनकी भावना तरंगाकुल न होकर धारा प्रवाह होती है. पूरे निबंध में भावना का आवेग समान स्तर और समान गति में विन्यस्त होता है. सरदार पूर्ण सिंह के निबंध इस शैली के उदाहरण हैं.
कुछ निबंधकारों में व्यंग्य और आलोचना का स्वर उभरा होता है. वे देश-दशा, समाज, धर्म, राजनीति आदि जीवन के अनेक क्षेत्रों में घूमते हुए नज़र आते हैं. वे कहीं व्यंग्य से तिलमिलाते और हँसते हैं. कहीं सहज ही अपनी आलोचना से सोचने के लिए मजबूर करते हैं और कभी-कभी अपनी मौज मस्ती और फक्कड़पन में बहा ले जाते हैं. भारतेन्दुयुग के लेखक, विशेषकर बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र और बालमुकुन्द गुप्त इसी शैली के निबंधकार हैं.
इस प्रकार हिन्दी गद्य और निबंध के सभी शैली-रूपों को गिनाना संभव नहीं है. निबंध की शैली के कुछ मुख्य रूपों का संकेत भर कर दिया गया है.
निबंध की कोटियाँ
हिन्दी के सबसे महत्त्वपूर्ण निबंधकार आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने निबंध की कोटियों और उनकी विशेषताओं की विवेचना की है. उसे नीचे दिया जा रहा है:
निबंधों की नाना कोटियाँ हैं. उन्हें साधारणत: पाँच श्रेणियों में बाँट लिया जा सकता है1. वार्तालाप मूलक2. व्याख्यान मूलक3. अनियंत्रित गप्प मूलक4. स्वगत चिंतन मूलक5. कलह मूलकइस प्रकार का विभाजन बहुत अच्छा नहीं है. इसमें साहित्यिक सूक्ष्मता नहीं है. आयात दृष्टि ही प्रधान है.1. ‘वार्तालाप मूलक’निबंध का लेखक मन-ही-मन एक ऐसे वातावरण की कल्पना करता है, जिसमें कुछ सच्चे जिज्ञासु लोग तत्व का निर्माण करने बैठे हों और अपने-अपने विचार सत्य निर्णय की आशा से सहज भाव से प्रकट करते जाते हैं.2. परन्तु 'व्याख्यान मूलक' निबंध-लेखक व्याख्यान देता रहता है. वह अपनी युक्तियों और तर्कों को बिना इस बात की परवाह किए उपस्थित करता जाता है कि कोई उसे टोक देगा.3. 'अनियंत्रित गप्प' मारते समय गप्प करने वाला हल्के मन से बातें करता है, वह अपने विषय के उन सरस और हास्योद्रेचक पहलुओं पर बराबर घूम-फिर कर आता रहता है, जो उसके श्रोता के चित्त को प्रसन्न कर देंगे.4. 'स्वगत चिंतन मूलक' लेखक अपने आप से ही बात करता रहता है. उसके मन में जो युक्तियाँ उठती रहती हैं, उन्हें तन्मय होकर वह विचारता जाता है. पर-पक्ष की आशंका उसे नहीं रहती.5. परन्तु 'कलह मूलक' निबंध का लेखक अपने सामने मानों एक प्रतिपक्षी को रखकर उससे उत्तेजना पूर्ण बहस करता रहता है, प्रतिपक्षी की युक्तियों का निरास करना उसका लक्ष्य नहीं होता, जितना अपने मत को उत्तेजित होकर व्यक्त करना. इस अंतिम श्रेणी के निबंधों में कभी-कभी अच्छी साहित्यिक रचना मिल जाती है, पर साधारणत: ये 'साहित्य' की श्रेणी से बाहर जा पड़ते हैं.
3 comments
nice
बहुत अच्छा लिखा है....जानकारी भी है .....क्रम जारी रखें
बहुत बढ़िया जानकारी, आभार!
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