डायरी में प्रतिदिन के निरीक्षणों, अनुभवों और कार्यों का ब्यौरा लिखा जाता है, उसमें निजी विचारों, भावों और प्रतिक्रियाओं की प्रधानता होती है. इसीलिए उसमें विचारों के प्रतिपादन की सुसम्बद्धता जरूरी नहीं है. किसी भी व्यक्ति की डायरी से उसके व्यक्तित्व के भीतरी पहलुओं पर प्रकाश पड़ता है. कुछ लोग डायरी को आत्मकथा का एक रूप मानते हैं. किन्तु डायरी में प्रतिदिन के ताजे अनुभव लिखे जाते हैं जबकि आत्मकथा में सुसम्बद्ध ढंग से अतीत की घटनाओं और अनुभवों को चुनकर लिखा जाता है.
उदाहरण के लिए नरहरि पारिख द्वारा संपादित ‘महादेव भाई की डायरी’ और बनारसी दास चतुर्वेदी द्वारा संपादित ‘गुप्त जी की डायरी’ का उल्लेख किया जा सकता है.
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